छेंकना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]छेंकना क्रि॰ स॰ [सं॰ √छद्( = ढाँकना) + करण अथवा सं॰ छेदक ( = काटनेवाला, ला॰ रोकना, घेरना, बाधक होना) प्रा॰ * छेअक > छेक > हिं॰ √छेंक + ना (प्रत्य॰)]
१. आच्छादित करना । स्थान घेरना । जगह लेना । जैसे,—(क) कितनी जगह तो यह पेड छेंके है । (ख) इस रोग की दवा करो नहीं तो यह सारा चेहरा छेंक लेगा ।
२. घेरना । रोकना । गति का अवरोध करना । रास्ता बंद करना । जाने न देना । उ॰—(क) प्रभू करुणामय परम विवेकी । तनु तजि रहत छाँह किमि छेंकी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) मेघनाद सुनि स्रवन अस गढ पुनि छेका आइ । उतरि दुर्ग ते बीर बर सम्मुख चलेउ बजाइ ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. लकीरों से घेरना । रेखा के भीतर डालना ।
४. लिखे हुए अक्षर को लकीर से काटना । मिटाना । जैसे,—इस पोथी में जहाँ जहाँ अशुद्ध हो छेंक दो । उ॰—सोइ गोसाई विधि गति जेइ छेंकी । सकइ को टारि टेक जो टेकी ।—तुलसी (शब्द॰) ।