जंगार
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जंगार संज्ञा पुं॰ [फा़॰ जंगार] [वि॰ जंगारी]
१. ताँबे का कखाव । तूतिया ।
२. एक प्रकार का रंग । उ॰—तस्वीर वही शंबरको जंगार में आया ।—कबीर मं॰, पृ॰ ३२० । विशेष—यह ताँबे का कसाव है जिसे सिरकाकश लोग निकालते हैं । वे ताँबे के चूर्ण को सिरके के अकं में डाल देने हैं । सिरके का बरतन रात भर मुँह बंद करके ओर दिन को मुँह खोल करके रखा रहता है । चौबीस घंठे के बाद सिरके को उस बरतन से निकालकर छिछले वरतन में सुखने के लिये रख देते है । जब पानी सूख जाता है तब उसके नीचे चमकीली नीले रंग की बुकनी निकलती है जो रँगाई के काम में जाती है ।