जगार संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ जग + आर (प्रत्य॰)] जागरण । जागृति । उ॰—नैना ओछे चोर सखी री । श्याम रूप निधि नेखे पाई देखन गए भरी री । कहा लेहि, कह तजै, विवश भय तैसी करनि करी री । भोर भए मोरे सो ह्वै गयो धरे जगार परी री ।—सूर (शब्द॰) ।