जनम

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

जनम संज्ञा पुं॰ [सं॰ जन्म]

१. उत्पत्ति । जन्म । दे॰ 'जन्म' । उ॰— बहु विधि राम शिवहि समुझावा । पारबती कर जनम सुनावा ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—धारना ।—पाना ।—लेना ।—होना । यौ॰—जनमघूँटी । जनमपत्ती । जनमपत्री ।

३. जीवन । जिदगी । आयु । उ॰—(क) होय न विषण बिराग, भवन बसत भा चौथपन । हृदय बहुत दुख लाग, जनम गयउ हरि भगति बिनु ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) तुलसीदास मोको बड़ो सीचु है तू जनम कवन विधि भरिहै ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—जनम गँवाना = व्यर्थ जनम या समय नष्ट करना । जनम बिगड़ना = धर्म नष्ट होना । जनम करम के ओछे = जन्मना और कर्मणा उभय प्रकार से हीन । उ॰—ऐसे जनम करम के औछे, ओछन हूँ ब्यौहारत ।—सूर॰, १ ।२२ । जनम भरना = जीवन बिताना । उ॰—नैहर जनमु भरब बरु जाई । जियंत न करब सवति सेवकाई ।—मानस, २ ।२१ । जनम भर जलना = आजीवन दुःख भोगना । उ॰—वह अनपढ़, गँवार, मूफट्ट, लोह लट्ठ के पाले पड़कर जनम भर जला करे ।—ठेठ॰, पृ॰ १० । जनम हारना = आजीवन किसी की सेवा के लिये संकल्प धारण करना । उ॰—अब मैं जनम संभु सै हारा ।—मानस, १ ।८१ ।