जमदग्नि

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

जमदग्नि संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक प्राचीन गोत्रकार वैदिक ऋषि जिनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है । भृगुवंशी ऋचीक ऋषि के पुत्र । विशेष—वेदों में जमदग्नि के बहुत से मंत्र मिलते हैं । ऋग्वेद के अनेक मंत्रों से जाना जाता है कि विश्वामित्र के साथ ये भी वशिष्ठ के विपक्षी थे । ऐतरेय ब्राह्मण हरिश्रंद्रोपाख्यान में लिखा है कि हरिश्चंद्र के नरमेघ यज्ञ में ये अध्वर्यु हुए थे । जमदग्नि का जिक्र महाभारत, हरिवंश और विष्णुपुराण में आया है । इनकी उत्पति के संबंध में लिखा है कि ऋचीक ऋषि ने अपनी स्त्री सत्यवती, जो राजा गाधि की कन्या थी, तथा उनकी माता के लिये भिन्न गुणोंवाले दो चरु तैयार किए थे । दोनों चरु अपनी स्त्री सत्यवती को देकर उन्होंने बतला दिया था कि ऋतुस्नान के उपरांत यह चरु तुम खा लैना और दूसरा चरु अपनी माता को खिला देना । सत्यवती ने दोनों चरु अपनी माता को देकर उसके संबंध में सब बातें बतला दीं । उसकी माता ने यह समझकर कि ऋचीक ने अपनी स्त्री के लिये अधिक उत्तम गुणोंवाला पुत्र उत्पन्न करने के लिये चरु तेयार किया होगा, उसका चरु स्वयं खा लिया और अपना चरु उसे खिला दिया । जब दोनों गर्भवती हुई, तब ऋचीक ने अपनी स्त्री के नक्षत्र देखकर समझ लिया कि चरु बदल गया है । ऋचीक ने उससे कहा कि मैंने तुम्हारे गर्भ से ब्रह्मविष्ठ पुत्र और तुम्हारी माता के गर्भ से महाबली और क्षात्र गुणोंवाला पुत्र उत्पन्न करने के लिये चरु तैयार किया था; पर तुम लोगों ने चरु बदंल लिया । इसपर सत्यवती ने दुःखी होकर अपने पति से कोई ऐसा प्रयत्न करने की प्रार्थना की जिसमें उसके नर्भ से उग्र क्षत्रिय न उत्पन्न हो; और यदि उसका उत्पन्न होना अनिवार्य ही हो तो वह उसकी पुत्रवधू के गर्भ से उत्पन्न हो । तदनुसार सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि और उसकी माता के गर्भ से विश्वामित्र का जन्म हुआ । इसीलिये जमदग्नि में भी बहुत से क्षत्रियोचित गुणा थे । जमदग्नि ने राजा प्रसेनजित् की कन्या रेणुका से विवाह किया था और उसके गर्भ से उन्हें रुमण्वान्, सुषेण, वह, विश्वाबहु और परशुराम नाम के पाँच पुत्र उत्पन्न हुए थे । ऋचीक के चरु के प्रभाव से उनमें से परशुराम में सभी क्षत्रियोचित गुण थे । जमदग्नि की मृत्यु के संबंध में विष्णुपुराण में लिखा है कि एक बार हैहय के राजा कार्तवीर्य उनके आश्रम से उनकी कामधेनु ले गए थे । इस पर परशुराम ने उनका पीछा करके उनके हजार हाथ काट डाले । जब कातंवीर्य के पुत्रों को यह बात मालूम हुई, तब लोगों ने जमदग्नि के आश्रम पर जाकर उन्हें मार डाला ।