जमीन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

जमीन संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰ जमीन]

१. पृथ्वी (ग्रह) । जैसे,—जमीन बराबर सूरज के चारों तरफ घूमती है ।

२. पृथ्वी का वह ऊपरी ठोस भाग जो मिट्टी का है और जिसपर हम लोग रहते हैं । भूमि । धरती । मुहा॰—जमीन आसमान एक करना=किसी काम के लिये बहुत अधिक परिश्रमं या उद्योग करना ।—बहुत बड़े बड़े उपाय करना । जमीन आसमान का फरक=बहुत अधिक अंतर । बहुत बड़ा फरक । आकाश पाताल का अंतर । उ॰—मुकाबिला करते हैं तो जमीन आसमान का फर्क पाते हैं ।—फिसाना॰, भा॰

३. पृ॰ ४३९ । जमीन आसमान के कुलावे मिलाना= बहुत डींग हाँकना । बहुत शेखी मारना । उ॰—चाहे इधर की दुनियाँ उधर हो जाय, जमीन आसमान के कुलावे मिल, जाँय, तूफान आए, भूचाल आए, मगर हम जरूर आएँगे ।— फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ५१ । जमीन का पैरों तले से निकल जाना=सन्नाटे में आ जाना । होश हवास जाता रहना । जमीन चूमने लगना=इस प्रकार गिर पड़ना, कि जिसमें जमीन के साथ मुहँ लग जाय । जैसे,—जरा से धक्के से वह जमीन चूमने लगा । जमीन दिखाना=(१) गिराना । पटकना । जैसे, एक पहलवान का दूसरे पहलवान को जमीन दिखाना । (२) नीचा दिखाना । जमीन देखना=(१) गिर पड़ना । पटका जाना । (२) नीचा देखना । जमीन पकड़ना=जमकर बैठना । जमीन पर चढ़ना=(१) घोड़े का तेज दौड़ने का अभ्यास होना । (२) किसी कार्य का अभ्यस्त होता । जमीन पर पैर या कदम न रखना=बहुत इतराना । बहुत अभिमान करना । उ॰—ठाकुर साहब ने बारह चौदह हजार रुपया नकद पाया तो जमीन पर कदम न रखा ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १९६ । जमीन पर पैर न पड़ना=बहुत अभिमान होना । जमीन में गड़ जाना=अत्यंत लज्जित होना ।

३. सतह, विशेषकर कपड़े, कागज या तख्ते आदि की वह सतह जिसपर किसी तरह के बेल बूटे आदि बने हों । जैसे,—काली जमीन पर हरी बूटी की कोई छोंट मिले तो लेते आना ।

४. वह सामग्री जिसका व्यवहार किसी द्रव्य के प्रस्तुत करने में आधार रूप से किया जाय । जैसे, अतर खीचनें में चंदन की जमीन, फुलेल में मिट्टी के तेल की जमीन ।

५. किसी कार्य के लिये पहले से निश्चय की हुई प्रणाली । पेशबंदी । भूमिका । आयोजन ।