जयन्ती
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जयंती संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ जयन्ती]
१. विजय करनेवाली । विज- यिनी ।—
२. ध्वजा । पताका ।
३. हलदी ।
४. दुर्गा का एक नाम ।
५. पार्वती का एक नाम ।
६. किसी महात्मा की जन्मतिथि पर होनेवाला उत्सव । वर्षगाँठ का उत्सव ।
७. एक बड़ा पेड़ जिसे जैत या जैता कहते हैं । विशेष—इस पेड़ की डालियाँ बहुत पतली और पत्तियाँ अगस्त की पत्तियों की तरह की, पर उनसे कुछ छोटी होती हैं । फूल अरहर की तरह पीले होते हैं । फूलों के झड़ जाने पर बित्ते सवा बित्ते लंबी पतली फलियाँ लगती हैं । फलियों के बीज उत्तेजक और संकोचक होते हैं और दस्त की बीमारियों में औषध के रूप में काम में आते हैं । खाज का मरहम भी इससे बनता है । इसकी पत्तियाँ फोड़े या सूजन पर बाँधी जाती हैं और गिलटियों को गलाने का काम करती हैं । इसकी जड़ पीसकर बिच्छू के काटने पर लगाई जाती है । यह जंगली भी होता है और लोग इसे लगाते भी हैं । इसका बीज जेठ असाढ़ में बोया जाता है । इसकी एक छोटी जाति होती है, जिसे 'चक्रभेद' कहते हैं । इसके रेशे से जाल बनता है । बंगाल में इसी लोग अप्रैल, मई में बोते हैं और सितंबर, अक्टूबर में काटते हैं । पौवा सन की तरह पानी में सड़ाया जाता है । पान के भीढों पर भी यह पेड़ लगाया लाता है ।
८. बैजंती का पौधा ।
९. ज्योतिष का एक योम । जब श्रावण मास के कृष्णापक्ष की अष्टमी की आधी रात के समय और शेष दंड में रोहिणी नक्षत्र पड़े, तब यह योग होता है ।
११. जो के छोटे पौधे जिन्हें विजयादशमी के दिन ब्राह्मण लोग यजमानों को मंगल द्रव्य के रूप में भेट करते हैं । जई । करई ।
१२. अरणी ।