जर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जर ^१पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ जरा] जरा । वृद्धावस्था ।
जर ^२ वि॰ [सं॰]
१. क्षय होने या जीर्ण होनेवाला ।
२. क्षीण । वृद्ध । पुराना ।
३. क्षय या जीराँ करनेवाला [को॰] ।
जर ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. नाश या जीर्ण होने की क्रिया ।
२. जैन दर्शन के अनुसार वह कर्म जिससे पाप, पुण्य, कलुष, राग- द्वेषादि सब शुभाशुभ कर्मों का क्षय होता है ।
जर ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ ज्वर] दे॰ 'ज्वर' । उ॰—खने संताप सीत जर जाड़ । की उपचरथ संदेह न छाँड़ । —विद्यापति॰, पृ॰ १३७
जर ^५ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक तरह का समुद्री सवार । कचहरा ।— (लश॰) ।
जर ^६ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ जड़] दे॰ 'जड़' ।
जर ^७ संज्ञा पुं॰ [फा॰ जर]
१. सोना । स्वर्ण । यौ॰—जरकम=दे॰ 'जरकश' । जरकार= (१) स्वर्णकार । सुनार । (२) सोने का काम की हुई वस्तु । जरगर । जरदोजो । जरनिगार । जरनिगारी । जरवपत । जरवाफता । जरदोज ।
२. धन । दौलत । रुपया । उ॰—जर ही मेरा अल्लाह है जर राम हमारा ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ५१५ । यौ॰—जरआस्ल=मूलधन । जरखरीद । जरगर । जरडिगरी= डिगरी की रकम । जरदार । जरनक्द=रोकड़ा । नकद । रुपया । जरनोलाम=नीलामी से प्रास धन । जरपेशगी= अग्रिम धन । बयाना ।