जागरण संज्ञा पुं॰ [सं॰] १. निद्रा का अभाव । जागना । २. किसी ब्रत, पर्व या धार्मिक उत्सव के उपलक्ष में अथवा इसी प्रकार के किसी और अवसर पर भगवदभजन करते हुए सारी रात जागना । उ॰—वासर ध्यान करत सब बीत्यो । निशि जागरन करन मन भीत्यो । —सूर (शब्द॰) ।