जातकर्म

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

जातकर्म संज्ञा पुं॰ [सं॰] हिंदुओं के दस संस्कारों में से चौथा संस्कार जो बालक के जन्म के समय होता है । उ॰— जातकर्म करि पूजि पितर सुर दिए महिदेवन दान । तेहिं औसर सुत तीनि प्रगट भए मंगल, मुद, कल्यान ।—तुलसी ग्रं॰ पृ॰ २६४ । विशेष—इस संस्कार में बालक के जन्म का समाचार सुनते ही पिता मना कर देता है कि अभी बालक की नाल न काटी जाय । तटुपरांत वह पहने हुए कपड़ों सहित स्नान करके कुछ विशेष पूजन और वृद्ध श्राद्ध आदि करता है । इसके अनंतर ब्रह्मचारी, कुमारी, गर्भवती या विद्वान् ब्राहाण द्वारा धोई हुई सिल पर लोहे से पीसे हुए चावल और जौ के चूर्ण को अँगूठ े और अनामिका से लेकर मंत्र पढ़ता हुआ बालक की जीभ पर मलता है । दूसरी बार वह सोने से घी लेकर मंत्र पढ़ता हुआ उसकी जीभ पर मलता है और तब नाल काटने और दूध पिलाने की आज्ञा देकर स्नान करता है । आजकल यह संस्कार बहुत कम लोग करते हैं ।