जादू
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जादू ^१ संज्ञा पुं॰ [फा॰]
१. वह अदभुत और आश्चर्यजनक कृत्य जिसे लोग अलौकिक और आमानवी समझते हों । इंद्रजाल । तिलस्म । विशेष—प्राचीन काल में संसार की प्राय: सभी जातियों के लोग किसी न किसी रूप में जादू पर बहुत विश्वास करते थे । उन दिनों रोगों की चिकित्सा, बड़ी बड़ी कामनाओं की सिद्धि और इसी प्रकार की अनेक दूसरी बातों के लिये अच्छे अच्छे जादूगरों और सयानों से अनेक प्रकार के जादू ही कराए जाते थे । पर अब जादू पर से लोगों का विश्वास बहुत अंशों में उठ गया है । क्रि॰ प्र॰—चलना ।—करना । मुहा॰—जादू उतरना = जादू का प्रभाव समाप्त होना । जादू चलना = जादू का प्रभाव होना । किसी बात का प्रभाव होना । जादू काम करना = प्रभाव होना । उ॰—उसमें न किसी का जादू काम कर रहा है और न किसी का टोना ।—चुभते॰ (प्रा॰) पृ॰ ३ । जादू जगाना = प्रयोग आरंभ करने से पहले जादू को चैतन्य करना ।
२. वह अदभुत खेल या कृत्य जो दर्शकों की दृष्टि और बुद्धि को धोखा दे कर किया जाय । ताश, अँगूठी, घड़ी, छुरी और सिक्के आदि के तरह तरह के विलक्षण और बुद्धि को चकरानेवाले खेल इसी के अंतर्गत हैं । बाजीगरी का खेल ।
३. टोना । टोटका ।
४. दूसरे को मोहित करने की शक्ति । मोहिनी । जैसे,—उसकी आँखों में जादू है । क्रि॰ प्र॰—करना ।—डालना ।
जादू पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ यादव] दे॰ 'जादो' । उ॰—पूरब दिसि गढ़ गढ़नपनि समुद्र सिखर आति द्रुग्ग । तहँ सु विजय सुर राजपति जादू कुलह अभग्ग ।—पृ॰ रा॰, २० । १ ।