जिरह

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

जिरह ^१ संज्ञा पुं॰ [अ॰ जरह]

१. हुज्जत । खुचुर ।

२. फेर फार के प्रश्न जिनसे उत्तरदाता घबड़ा जाय और सच्ची बात छिपा न सके । ऐसी पूछताछ जो किसी से उसकी कही हुई बातों की सत्यता की जाँच के लिये की जाय । क्रि॰ प्र॰—करना ।—होना । मुहा॰—जिरह काढ़ना या निकालना=खोद बिनोद करना । बहुत अधिक पूछताछ करना । बात में बात निकालना । खुचुर निकालना ।

३. वह सूत की डोरी जो बैसर में ऊपर वय के गाँछने के लिये लगी रहती है (जुलाहे) ।

४. चीरा । घाव (को॰) ।

जिरह ^२ संज्ञा स्त्री॰ [फा़॰ जिरह] लोहे की कड़ियों से बना हुआ कवच । वर्म । बकतर । यौ॰—जिरहपोश=जो बकतर पहने हो । कवची ।