जीर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जीर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. जीरा ।
२. फूल का जीरा । केसर । उ॰—रघुराज पंकज को जीर नहिं बेधै हरि धरौं किमि धीर पावै पीर मन मोर है ।—रघुराज (शब्द॰) ।
३. खडग् । तलवार ।
४. अणु ।
जीर ^२ वि॰ क्षिप्र । तेज । जल्दी चलनेवाला ।
जीर ^३ संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰ जिरह] जिरह । कवच । उ॰— कुंडल के ऊपर कडाके उठैं ठौर ठौर, जीरन के ऊपर खड़ाके खड़गान के ।—भूषण (शब्द॰) ।
जीर ^४पु वि॰ [सं॰ जीर्ण] पुराना । जर्जर । उ॰—मनहु मरी इक वर्ष की भयो तासु तन जीर । करषत कर महि पर गिरी गयो सुखाय शरीर ।—रघुराज (शब्द॰) ।