जुटना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जुटना क्रि॰ अ॰ [सं॰ युक्त प्रा॰, जुत्त + ना (प्रत्य॰) या/?/ सं॰ जुड़् बाँधना]
१. दो या अधिक वस्तुओं का परस्पर इस प्रकार मिलना कि एक का कोई पार्श्व या अंग दूसरे के किसी पार्श्व या अंग के साथ दृढ़तापूर्वक लगा रहे । एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ इस प्रकार सटना कि बिना प्रयास या आघात के अलग न हो सके । दो वस्तुओं का बँधने, चिपकने, सिलने या जड़ने के कारण परस्पर मिलकर एक होना । संबद्ध होना । संश्लिष्ट होना । जुड़ाना । जैसे,— इस खिलौने का टूटा सिर गोंद से नहीं जुटता, गिर गिर पड़ता है । संयो॰ क्रि॰— जाना । विशेष— मिलकर एक रूप हो जानेवाले द्रव या चूर्ण पदार्थो के संबंध में इस क्रिया का प्रयोग नहीं होता ।
२. एक वस्तु का दूसरी वस्तु के इतने पास होना कि दोनों के बीच अवकाश न रहे । दो वस्तुओं का परस्पर इतने निकट होना कि एक का कोई पार्श्व दूसरे के किसी पार्श्व से छू जाय । भिड़ना । सटना । सटना । लगा रहना । जैसे,— मेज इस प्रकार रखो कि चारपाई से जुटी न रहे ।
३. लिपटना । चिमटना । गुथना । जैसे— दोनों एक दूसरे से जुटे हुए खूब लात घूँसे चला रहे हैं ।
४. संभोग करना । प्रसंग करना ।
५. एक ही स्थान पर कई वस्तुओं या व्याक्तियों का आना या होना । एकत्र होना । इकट्ठा होना । जमा होना । जैसे,— भीड़ जुटना, आदमियों का जुटना, सामान जुटना ।
६. किसी कार्य में योग देने के लिये उपस्थित होना । जैसे,— आप निश्चिंत रहें, हम मौके पर जुट जायैगे ।
७. किसी कार्य में जी जान से लगना । प्रवृत्त होना । तत्पर होना । जैसे,—ये जिस काम के पीछे जुटते हैं उसे कर ही के छोड़ते हैं ।
८. एकमत होना । अभिसंधि करना । जैसे, —दोनों ने जुटकर यह उपद्रव खड़ा किया है ।