जुराफा

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

जुराफा संज्ञा पुं॰ [अ॰ जिराफ़] अफरीका का एक जंगली पशु । विशेष—इसके खुर बैल के से, टाँगे और गर्दन ऊँट की सी लंबी, सिर हिरन का सा, पर बहुत छोटे छोटे और पूँछ गाय की सी होती है । इसके चमडे़ का रंग नारंगी का सा होता है जिसपर बडे़ बडे़ काले धब्बे होते हैं । संसार भर में सबसे ऊँचा पशु यही है । १५ या

१६. फुट तक ऊँचाई तक के तो सब ही होते हैं पर कोई कोई १८ फुट तक की ऊँचाई के भी होते हैं । इसकी आँखें ऐसी बड़ी और उभरी हुई होती हैं कि बिना सिर फेरे हुए ही यह अपने चारों ओर देख सकता है । इसी से इसका पकड़ना या शिकार करना बहुत कठिन है । इसके नथुनों की बनावट ऐसी विलक्षण होती है जब यह चाहे उन्हें बंद कर ले सकता हैं । इसकी जीभ १७ इंच तक लंबी होती हैं । यह प्रायः वृक्षों की पत्तियाँ खाता हैं और मैदानों में झुँड बाँधकर रहता है । चरते समय झुंड के चारों ओर चार जुराफे पहरे पर रहते हैं जो शत्रु के आने की सूचना तुरंत झुंड को दे देते हैं । शिकारी लोग घोड़ों पर सवार होकर इसका शिकार करते हैं, परंतु बहुत निकट नहीं जाते, क्योंकि इसके लात की चोट बहुत कड़ी होती है । इसका चमड़ा इतना सख्त होता है की उसपर गोली असर नहीं करती । इसका मांस खाया जाता है । यह पशु झुंड बाँधकर परिवारिक रीति से रहता है, इसी से हिंदी कवियों ने इसके जोडे़ में अत्यंत प्रेम मानकर इसका काव्य में उल्लेख किया है परंतु समझने में कुछ भ्रम हुआ है और इसको पशु की जगह पक्षी समझा है । जैसे,—(क) मिलि बिहरत बिछुरत मरत दंपति अति रसलीन । नूतन विधि हेमंत की जगत जुराफा कीन ।—बिहारी (शब्द॰) । (ख) जगह जुराफा ह्वै जियत तज्यो तेज निज भानु । रूप रहे तुम पूस में यह घौं कोन सयानु ।—पद्माकर (शब्द॰) ।