जे
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जे †पु ^१ सर्व॰ [सं॰ ये]
१. 'जो' का बहुबचन ।
२. दे॰ 'जो' । उ॰—जलचर थलचर नभचर नाना । जे जड़चेतन जीव जहाना ।—मानस, १ ।३ ।
जे पु ^२ सर्व॰ [सं॰ एतत्] यह का बहुबचन । उ॰—माई, जे दोऊ, कौन गोप के ढोटा । इनकी बात कहा कहौ तोसौं, गुनन बड़े, देखन के छोटा ।—नंद ग्रं॰, पृ॰ ३४१ ।
जे ^३ पु सर्व॰ [सं॰ इदम्] यह । उ॰— आगामिनी जामिनी जुग ही । ब्रजभामिनीन सौं जे कही ।—नंद ग्रं॰, पृ॰ ३१७ ।