जोग
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]जोग ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'योग' । यौ॰— जोगमुद्रा = योग की मुद्रा । जोग समाधि = योग की समाधि ।
जोग ^२ अव्य॰ [सं॰ योग्य]
१. के लिये । वास्ते । उ॰—अपने जोग लागि अस खेला । गुरु भएउँ आपु कीन्ह तुम चेला ।—जायसी (शब्द॰) ।
२. कौ । के निकट । (पु॰ हिं॰) । विशेष— इस शब्द का प्रयोग बहुधा पुरानी परिपाटी की चिट्ठियों के आरंभिक वाक्यों में होता है । जैसे,—'स्वस्ति श्री भाई परमानंद जी जोग लिखा काशी से सिताराम का राम राम बाँचना ।' बहुधा यह द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर काम में आता है । जैसे,— इनमें से एक साडी़ भाई कृष्ण- चंद्र जी जोग देना ।