ज्योँ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ज्योँ क्रि॰ वि॰ [सं॰ यः + इव]
१. जिस प्रकार । जैसे । जिस ढंग से । जिस रूप से । उ॰—(क) तुलसिदास जगदव जवाअ ज्यौं अनघ आगि लागे डाढ़न ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) करी न प्रीति श्याम सुंदर सो जन्म जुआ ज्यों हायो ।—सूर (शब्द॰) । विशेष—अब गद्य में इस शब्द का प्रयोग अकेले नहीं होता केवल कविता में साद्दश्य दिखलाने के लिये होता है । मुहा॰—ज्यों त्यों = (१) किसी न किसी प्रकार । किसी ढंग से । झंझट और बखेड़े के साथ । (२) अरुचि के साथ । अच्छी तरह नहीं । ज्यों त्यों करके = (१) किसी न किसी प्रकार । किसी ढंग से । किसी उपाय से । जिस प्रकार हो सके उस प्रकार । जैसे,—ज्यो त्यों करके उसे हमारे पास ले आओ । (२) झंझट और बखेड़े के साथ । दिक्कत के साथ । कठिनाई के साथ । जैसे,—रास्ते में बड़ी गहरी आँधी आई, ज्यों त्यों करके घर पहुँचे । ज्यों का त्यों = (१) जैते का तैसा । उसी रूप रंग का । तद्रूप । सदृश । (२) जैसा पहले था वैसा ही । जिसमें कुछ फेर या घटती बढ़ती न हुई हो । जिसके साथ कुछ क्रिया न की गई हो । जैसे,—सब काम ज्यों का त्यों पड़ा है कुछ भी नहीं हुआ है । विशेष—वाक्य का संबंध पूरा करने के लिये इस शब्द के साथ 'त्यों' का प्रयोग होता है पर गद्य में प्रायः नहीं होता ।
२. जिस क्षण । जैसे ही । जैसे,—(क) ज्यों मैं आया कि पानी बरसने लगा । (ख) ज्यों ही मै पहुँचा, वह उठकर चला गया । विशेष—इस अर्थ में इसका प्रयोग 'ही' के साथ अधिक होता है । मुहा॰—ज्यों ज्यों = जिस क्रम से । जिस मात्रा से । जितना । उ॰—जमुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न । त्यों त्यों सुकृत सुभट कलि रपहि निदरि लगे वहि काढ़न ।—तुलसी (शब्द॰) ।