ज्वारभाटा

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ज्वारभाटा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ ज्वार + भाँटा] समुद्र के जल का चढा़व उतार । लहर का बढ़ना और घटना । विशेष—समुद्र का जल प्रतिदिन दो बार चढ़ता और दो बार उतरता है । इस चढा़व उतार का कारण चंद्रमा और सूर्य का आकर्षण है । चंद्रमा के आकर्षण में दूरत्व के वर्ग के हिसाब से कमी होंती है । पृथ्वी जल के उस भाग के अणु जो चंद्रमा से निकट होगा, उस भाग के अणुओं की अपेक्षा जो दूर होगा, अधिक आकर्षित होंगे । चंद्रमा की अपेक्षा पृथ्वी से सूर्य की दूरी बहुत अधिक है; पर उसका पिंड चंद्रमा से बहुत ही बडा़ है । अतः सुर्य की ज्वार उत्पन्न करनेवाली शक्ति चंद्रमा से बहुत कम नहीं है ४/९ के लगभग है । सूर्य की यह शक्ति कभी कभी चंद्रमा की शक्ति के प्रतिकूल होती है; पर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन दोनों की शक्तियाँ परस्पर अनुकूल कार्य करती हैं; अर्थात् जिस अंश में एक ज्वारा उत्पन्न करेगी, उसी अंश में दूसरी भी ज्वार उत्पन्न करेगी । इसी प्रकार जिस अंश में एक भाटा उत्पन्न । करैगी दूसरी भी उसी में भाटा उत्पन्न करेगी । यही कारण है कि अमावस्या और पूर्णिमा को और दिनों की अपेक्षा ज्वार अधिक ऊँची उठती है । सप्तमी और अष्टमी के दिन चंद्रमा और सूर्य की आकर्षण शक्तियाँ प्रतिकूल रूप से कार्य करती हैं, अतः इन दोनों तिथियों को ज्वार सबसे कम उठती है ।