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झाँसा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

झाँसा संज्ञा पुं॰ [सं॰ अध्यास (= मिथ्या ज्ञान), प्रा॰ अञ्झास] अपना काम साधने के लिये किसी को बहकाने की क्रिया । धोखा । दमबुत्ता । छल । उ॰— अरे मन उसे क्या है दुनियाँ का झाँमा । लिया हात में भीक का जिसने काँसा ।— दक्खिनी॰, पृ॰ २५७ । क्रि॰ प्र॰—देना । उ॰— अध्वासी लल्ली पत्तो करके कहाँ ले ग ई कैसा झाँसा दे गई ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ४१० ।—बताना । उ॰—रुपया पैसा अपने पास रक्ख/?/, यारन के दूर से झाँसा बताव/?/ ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ३३५ । यौ॰—झाँसा पट्टी = धोखा घड़ी । मुहा॰—झाँसे में आना = धोखे में आना । उ॰—यहाँ बड़े बड़ों की आँखें देखी हैं । आपक् झाँसे में कोई आए तो आए हमपर चकमा न चलेगा ।—फिसाना॰, भा॰ १, पृ॰ ५ ।