झार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]झार पु † ^१ वि॰ [सं॰ सर्व, प्रा॰ सारो, हिं॰ सारा]
१. एकमात्र । निपठ । केवल । उ॰— दीयो दधि दान को सूकेसे ताहि भावत है जाहि मन मायो झर झगरे गोपाल को । —पद्माकर (शब्द॰) ।
२. संपूर्ण । कुल । सब । समस्त । उ॰— कै नख तें सिख सौ पदमाकर जाहिरै झार सिंगार किया है । —पदमा— कर ग्रं॰, पृ॰ १६८ ।
३. समूह । झुंड़ । यौ॰— झारझार । झारझार ।
झार ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ झाला (=ताप,)]
१. दाह डाह । जलन । ईर्ष्या । उ॰—मोसौं कहौ बात बाबा यह बहुत करत तुम सोच बिचार । कहा कहौं तुम सों मैं प्यारे कंस करत तुमसौं कछु झार ।— सूर॰ १० ।५३० ।
२. ज्वाला । लपट । आँच । सं॰—(क) जनहुँ छाँह मँह धूप दिखाई । तैसे झार लाग जो आई ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) नाम लै चिलात बिलखात अकुलात अति तात तात तोंसियत झोंसियत झारहीं ।—तुलसी ग्र॰, पृ॰ १७४ । (ग) गरज किलक आघात उठत मनु दामिनि पावक झार ।—सूर (शब्द॰) ।
३. झाल । चरपरापन । उ॰— छाँछ छबीली धरी धुँगारी । झरहै उठत झार की न्यारी ।—सूर (शब्द॰) ।
४. बर्षा की बूँदे । झड़ी ।
झार ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ झड़ना] झरना । पौना ।
झार ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ झाट, देश झाड़(=लता गहन)]
१. वृक्ष । पेड़ । झाड़ ।
२. एक पेड़ का नाम ।
झार ^२पु संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ ज्वाला, हिं॰ झाल] झार । ज्वाला । उ॰— औरु दगध का कहों अपारा । सूनै सो जरौ कठिन असि झरा ।— पद्मावत, पृ॰ २४१ ।