झाल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

झाल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ झल्लक] झाँझ । काँसे का बना हुआ ताल देने का वाद्य । उ॰— सहस गुंजार में परमली झाल है, झिलमिली उलटि के पौन भरना ।— पलटू॰, पृ॰ ३० ।

झाल ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰]

१. रहट्टे का बड़ा खाँचा ।

२. झालने की क्रीया या भाव ।

झाल ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ झाला]

१. चरपराहट । तीतापन । तीक्ष्णता । जैसे, राई की झाल, मिरचे की झाल ।

२. तरंग । मौज । लहर ।

३. कामेच्छा । चुल । प्रसंग करने की कामना । झल ।

झाल ^४ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ झड़] दो तीन दिन की लगातार पानी की झ़ड़ी जो प्रायः जाड़े में होती है । उ॰— जिन जिन संबल नां किया असपुर पाटन पाय । झाल परे आथए संबल किया न जाय ।—कबीर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰— करना ।

झाल ^५ वि॰ [हिं॰ झार] दे॰ 'झार' ^१ ।

झाल ^६ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ ज्वाल, प्रा॰, झाल]

१. आँच । ज्वाला । उ॰— अग्नि के झल मैं सांकड़े पैसता बैठते ऊठते श्री राम रक्षा करें ।—रामानंद॰, पृ॰ ६ । †

२. ग्रीष्म । ऋतु । उ॰— आये भेल झाल कुसुम सब छुछ । वारि विहुन सर किओ नहिं पूछ ।—विद्यापति, पृ॰, ३१५ ।