झूला

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

झूला संज्ञा पुं॰ [सं॰दोला]

१. पेड़ की ड़ाल, छत या और किसी ऊँचे स्थान में बाँधकर लटकाई हुई दोहरी या चौहरी रस्सियाँ जंजीर आदि से बँधी पटरी जिसपर बैठकर झूलते हैं । हिंड़ोला । विशेष— झूला कई प्रकार का होता है । इस प्रांत में लोग साधारणतः वर्षा ऋतु या पेड़ों की ड़ालों में झूलते हुए रस्से बाँधकर उसके निचले भाग में तख्ता या पटरी आदि रखकर उसपर झूलते हैं । दक्षिण भारत में झूलें का रवाज बहुत है । वहाँ प्रायः सभी धरों में छतों में तार या रस्सी या जंजीर लटका दी जाती है और बड़ै तख्ते या चौकी के चारे कोने से उन रस्सियों को बाँधकर जंजीरों को जड़ देते हैं । झूले का निचला भाग जमीन से कुछ ऊँचा होना चाहिए जिसमें वह सरलता से बराबर झूल सके । झूले के आगे और पीछे जाने और आने को पेंग कहते हैं । झूले पर बैठकर पेंग देने के लिये या तो जमीन पर पैर की तिरछा करे आघात करते हैं या उसके एक सिरे पर खड़े होकर झाँके से नीचे की ओर झुकते हैं । क्रि॰ प्र॰—झूलना ।—ड़ोलना ।—पड़ना ।

२. बड़े बड़े रस्से, जंजीरों या तारों आदि का बना हुआ पुल जिसके दोनों सिरे नदी या नाले आदि के दोनों किनारों पर किसी बड़े खँभै, चट्टान या बुर्ज आदि में बँधे होते हैं और जिसके बीच का भाम अधर में लटकता और झूलता रहता है । झूलता हुआ पुल । जैसे, लछमन झूला । विशेष— प्राचीन काल में भारतवर्ष में पहाड़ी नदियों आदि पर इसी प्रकार के पुल होते थे । आजकल भी उत्तरी भारत तथा दक्षिणी अमेरिका की छोटी छोटी पहाड़ी नदियों और बड़ी बड़ी खाइयों पर कहीं कहीं जंगली जातियों के बनाए हुए इस प्रकार के पुरानी चाल के पुल पाए जाते हैं । पुरानी चाल के पुल दो तरह के होते हैं—(१) एक बहुत छोटे और मजबूत रस्से के दोनों सिरे नदी या खाई आदि के दोनो किनारों पर की दो पड़ी चट्टानों आदि में बाँध दिए जाते हैं और उनमें बहुत बड़ा बौरा या चौखटा आदि लटका दिया जाता है । ऊपरवाले रस्से को पकड़कर यात्री उसे कभी कभी स्वयं सरकाता चलता है ।(२) मोटी मोटी मजबूत रस्यों का जाल बुनकर अथवा छोटे छोटे ड़ंड़े बाँधकर नदी गी चौड़ाई के बराबर लंबी और ड़ेढ हाथ चौड़ी एक पटरी सी बना लेते हैं और उसे रस्सों में लटकाकर दोनों और रस्सियों से इस प्रकार बाँध देते हैं कि नदी के ऊपर उन्हीं रस्सी और रस्सियों की लटकती हुई एक गली सी बन जाती है । इसी में से होकर आदमी चलते हैं । इसके दोनों सिरे भी नदी के दोनों किनारे पर चट्टानों के बंधे होते है । आजकल यूरोप, अमेरिका आदि की बड़ी बड़ी नदियों पर भी मोटे मोटे तारों और जंजीरों से इसी प्रकार के बहुत बड़े, बढ़िया और मजबूत पुल बनाए जाते हैं ।

३. वह बिस्तर जिसके दोनों सिरे रस्सियों में बाँधकर दोनों ओर दो ऊँची खूँटियों या खंभों आदि में बाँध दिए गए हो । विशेष— इस देश में साधारणतः देहाती लोग इस प्रकार के टाट के बिस्तर पेड़ों में बाँध देते हैं और उनपर सोते हैं । जहजों में खलासी लोग भी इस प्रकार के कनवास के बिस्तरों का व्यवहार करते हैं ।

३. पशुओं की पीठ पर ड़ालने की झूल ।

५. देहाती स्त्रियों के पहनने का ढीला ढाला कुरता ।

६. झोंका । झटका ।— (क्व॰) । †

७. तरबूज । †

८. स्त्रियों का एक प्रकारा का आभूषण ।

२. दे॰ 'झूलना' ।