झोल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

झोल ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ झालि (= आम का पना)] तरकारी आदि का गाढ़ी रसा । शोरबा ।

२. किसी अन्न के आटे में मसाले देकर कढ़ी आदि की तरह पकाई हुई कोई पतली लेई ।

३. माँड़ । पीच ।

४. मुलम्मा या गीलट जो धातुओं पर चढ़ाया जाता है । क्रि॰ प्र॰—करना ।— चढ़ाना ।—फेरना । यौ॰—झोलदार ।

झोल ^२ संज्ञा पु॰ [सं॰ दोल(दोलन), हिं॰ झूलना]

१. पहने या ताने हुए पकड़ों आदि में वह अंश जो ढीला होने के कारण झूल या लटककर झोले की तरह ही जाता है । जैसे, कुरते या कोट में का झोल, छत की चाँदनी में का झोल आदि ।

२. कपड़े आदि के ढीले होने के कारण उसके झूलने या लटकने का भाव या क्रिया । तनाव या समाब का उलटा । क्रि॰ प्र॰— डालना ।—निकलना ।— निकालना । — पड़ना ।

३. पल्ला । आँचल । उ॰— फूली फिरत जसोदा घर घर उबटि कान्ह अन्हवाय अमोल । तनक बदन दोउ तनक तनक कर तनक चरन पोंछत पट झोल ।— सूर (शब्द॰) ।

४. परदा । ओट । आड़ । उ॰— ऊधो सुनत तिहारो बोल । ल्याए हरि कुसलात धन्य तुम घर घर पारयो गोल । कहन देहु कहु करै हमरो बन उठि जैहे झोल । आवत ही याको पहिचान्यो निपटहि ओछो चोल ।—सूर (शब्द॰) ।

५. हाथी की चाल का एक ऐब जिसके कारण वह बिल्कुल सीधा न चलकर बराबर झूलता हुआ चलता है ।

झोल ^४ संज्ञा पुं॰ भूल । गलती । जैसे— गदहे की गौने में नौ मन का भोल ।—(कहा॰) ।

झोल ^५ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ झिल्ली या झोली]

१. वह झिल्ली या थैली जिसमें गर्भ से निकले हुए बच्चे या अंडे रहते हैं । जैसे, कुतिया का झोल, मुरगी का झोल, मछली का झोल आदि । बिशेष— इस शब्द का प्रयोग केवल पशुओं और पक्षियों आदि के संबंध में ही होता है, मनुष्यों आदि के संबंध में नहीं । क्रि॰ प्र॰— निकलता ।—निकालना । मुहा॰— झोल वैठान = मुरगी के नीचे सेने के लिये अंडे रखना ।

२. गर्भ । उ॰— भक्ति बीज बिनसै नहीं आय परे जो झोल । जो कंचन बिष्ठा परे घटै न ताको माल ।— कबीर (शब्द॰) ।

झोल ^६ संज्ञा पुं॰ [सं॰ ज्वाल हिं॰ झाल]

१. राख । भस्म । खाक । उ॰— (क) तुम बिन कंता धन हरछै (हृदै या हृदै) तृन तृन बरमा जोल । तेहि पर बिरह जराइ के चहै उड़ावा झोल ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) आगि जो लगी समुद्र में टुटि टुटि खसै जो झोल । रोवै कबिरा डिंभिया मोरा हिरा जरै अमोल ।— कबीर (शब्द॰) ।

२. दाह । जलन ।