टकटकी
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]टकटकी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ टक या सं॰ त्राटकी] ऐसी तकाई जिसमें बढ़ी देर तक पलक न गिरे । अनिमेष दृष्टि । स्थिर दृष्टि । गड़ी हुई नजर । उ॰—टकटकी चंद चकोर ज्यों रहत है । सृरत और निरत का तार बाजै ।—कबीर श॰, भा॰ १, पृ॰ ८८ । क्रि॰ प्र॰—लगाना । मुहा॰—टकटकी बँधना = स्थिर दृष्टि होना । टकटकी बाँधना = स्थिर दृष्टि से देखना । ऐसा ताकना जिसमें कुछ काल तक पलक न गिरे । उ॰—और की खोट देखती बेला । टकटकी लोग बाँद देते हैं ।—चोखे॰, पृ॰ १५ ।