टाँग
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]टाँग संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ टङ्ग]
१. शरीर का वह निचला भाग जिसपर धड़ ठहरा रहता है और जिससे प्राणी चलते या दौड़ते हैं । साधारणत: जाँघ की जड़ से लेकर एड़ी तक का अंग जो पतले खंभे या डंडे के रूप में होता है, विशेषत: घुटने से लेकर एड़ी तक का अंग । जीवों के चलने फिरने का अवयव । (जिसकी संख्या भिन्न भिन्न प्रकार के जीवों में भिन्न भिन्न होती है) । मुहा॰—टाँग अड़ाना = (१) बिना अधिकार के किसी काम में योग देना । किसी ऐसे काम में हाथ डालना जिसमें उसकी आवश्यकता न हो । फजूल दखल देना । (२) अड़ंगा लगाना । विघ्न डालना । बाधा उपस्थित करना । (३) ऐसे विषय पर कुछ कहना जिसकी कुछ जानकारी न हो । ऐसे विषय में कुछ विचार या मत प्रकट करना जिसका कुछ ज्ञान न हो । अनधिकार चर्चा करगा । जैसे,—जिस बात को तुम नहीं जानते उसमें क्यों टाँग अड़ाते हो ? टाँग उठाना = (१) स्त्रीसंभोग करना । स्त्री के साथ सँभोग करने के लिये प्रस्तुत होना । आसन लेना । (२) जल्दी जल्दी पैर बढ़ाना । जल्दी जल्दी चलना । टाँग उठाकर मूतना = कुत्तों की तरह मूतना । टाँग की राह निकल जाना = दे॰ 'टाँग तले (या नीचे)' से निकलना । उ॰—उस अंदर के अखाड़े से कोरे निकल जाओ तो टाँग की राह निकल जाऊँ ।—फिसाना॰, भा॰ १, पृ॰ ७ । टाँग टूटना = चलने फिरने से थकावट आना । उ॰—हर रोज आप दौड़ते हैं । साहब हमपर अलग खफा होते हैं और टाँगें अलग टूटती हैं ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १५७ । टाँग तले (या नीचे) से निकलना = हार मानना । परास्त होना । नीचा देखना । अधिन होना । टाँग तले (या नीचे) से निकालना = हराना । परास्त करना । नीचा दिखाना । अधीनता या हीनता स्वीकार कराना । टाँग तोड़ना = (१) अंगभंग करना । (२) बेकाम करना । निकम्मा करना । किसी काम का न रखना । (३) किसी भाषा को थोड़ा सा सीखकर उसके टूटे फूटे या अशुद्ध वाक्य बोलना । जैसे,—क्या अंग्रेजी की टाँग तोड़ते हो ? (अपना) टाँग तोड़ना = चलते चलते पैर थकना । घूमते घूमते हैरान होना । टाँग पसारकर सोना = (१) निर्द्धद होकर सोना । बिना किसी प्रकार के खटके के चैन से दिन बिताना । टाँगें रह जाना = (१) चलते चलते पैर दर्द करने लगना । चलते चलते पैरों का शिथिल हो जाना । (२) लकवा या गठिया से पैर का बेकाम हो जाना । टाँग लेना = (१) टाँग का पकड़ना (२) (कुत्ते आदि का) पैर पकड़कर काट खाना । (३) कुत्ते की तरह काटना । (४) पीछे पड़ जाना । सिर होना । पिंड न छोड़ना । टाँग घराबर = छोटा सा । जैसे,—टाँग बराबर लड़का, ऐसी ऐसी बातें कहता है । (किसी की) टाँग से टाँग बाँधकर बैठना = किसी के पास से न हटना । सदा किसी के पास बना रहना । एक घड़ी के लिये भी न छोड़ना । टाँग से टाँग बाँधकर बैठाना = अपने पास से हटने न देना । सदा अपने पास बैठाए रहना । एक घड़ी के लिये भी कहीं आने जाने न देना ।
२. कुश्ती का एक पेंच जिसमें विपक्षी की टाँग में टाँग मारकर या अड़ाकर उसे चित्त कर देते हैं । विशेष—यह कई पर्करा का होता है । जैसे,—(क) पिछली टाँग = जब विपक्षी पीछे या पीठ की ओर हो तब पीछे से उसके घुटने के पास टाँग मारने को पिछल ी टाँग कहते हैं । (ख) बाहरी टाँग = जब दोनों पहलवान आमने सामने छाती से छाती मिलाकर भिड़े हों तब विपक्षी के घुटने के पिछले भाग में जोर से टाँग मारने को बाहरो टाँग कहते हैं । (ग) बगली टाँग = विपक्षी को बगल में पाकर बगल से उसके पैर में टाँग मारने को बगली टाँग कहते हैं । (घ) भीतरी टाँग = जब विपक्षी पीठ पर हो, तब मौका पाकर भीतर ही से उसके पैर में पैर फँसाकर झटका देने को भीतरी टाँग कहते हैं । (च) अड़ानी टाँग = विपक्षी को दोनों टाँगों के बीच में टाँग फँसाकर मारने अड़ानी टाँग कहते हैं ।
३. चतुर्थांश । चौथाई भाग । चहारुम ।—(दलाल) ।