टाँच
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]टाँच ^१ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ टाँकी] ऐसा वचन जिससे किसी का चित्त फिर जाय और वह जो कुछ दूसरे का कार्य करनेवाला हो, उसे न करे । दूसरे का काम बिगाड़नेवाली बात या वचन । भाँजी । उ॰—मेरे व्यवहारों में टाँच मारी है, मेरे मित्रों को ठंढा और मेरे शत्रुओं को गर्म किया है ।— भारतेंदु॰ ग्रं॰, भाग॰ १, पृ॰ ५९९ । क्रि॰ प्र॰—मारना ।
टाँच ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ टाँका]
१. टाँका । सिलाई । डोभ ।
२. टँकी हुई चकती । थिगली । उ॰—देह जीव जोग के सखा मृषा टाँच न ठाँचा ।—तुलसी (शब्द॰) ।
३. छेद । सूराख ।
टाँच † ^३ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] हाथ पैर का सुत्र पड़ जाना या सो जाना । टाँस । क्रि॰ प्र॰—धरना ।—पकड़ना ।— होना ।