टाँड़ा
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
टाँड़ा ^२ संज्ञा पुं॰ [दे॰ ताड] बाहु पर पहनने का स्त्रियों का एक गहना । टँड़िया ।
टाँड़ा ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अट्टाल, हिं॰ अटाला, टाल]
१. ढेर । अटाला । टाल । राशि ।
२. समूह । पंक्ति ।
३. घरों की पंक्ति ।
४. दे॰ 'टाँड़' ।
टाँड़ा ^४ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] कंकड़ मिली मिट्टी । कंकरीली मिट्टी ।
टाँड़ा ^५ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ टाँड़ (=समूह)]
१. अन्न आदि व्यापार की वस्तुओं से लदे हुए बैलों या पशुओं का झुंड जिसे व्यापारी लेकर चलते हैं । बरदी । बनजारों के बैलों आदि का झुंड । बनजारें के बैल ज्यों टाँड़ो उतरयौ आय ।—कबीर (शब्द॰) ।
२. व्यापारियों के माल की चलान । बिक्री के माल का खेप । व्यापारी का माल जो लादकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाय । उ॰—अति खीन मृनाल के तारहु ते तेहि ऊपर पाँव दै आवनो है । सुई बेह लौं बेह सकी न तहाँ परतीति को टाँड़ो लदावनों है ।—बोधा (शब्द॰) । मुहा॰—टाँड़ा लदना = (१) बिक्री का माल लदना । (२) कूच की तैयारी होना । (३) मरने की तैयारी होना ।
३. व्यापारियों का चलता समूह । बनजारों का झुंड जो एक स्थान से दूसरे स्थान को जाता हो ।
४. नाव पर चढ़कर इस पार से उस पार जानेवाले पथिकों और व्यापारियों का समूह । उ॰—लीजै बेगि निबेरि सूर प्रभु यह पतितन को टाँड़ो ।— सूर (शब्द॰) ।
५. कुटुंब । परिवार ।
टाँड़ा ^६ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तुणड, हिं॰ टूँड़] एक प्रकार का हरा कीड़ा जो गन्ने आदि की जड़ों में लगकर फसल को हानि पहुँचाता है । क्रि॰ प्र॰—लगना ।