टिड़ी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

टिड़ी पु संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ टिड़्डी] दे॰ 'टड्डी' । उ॰—भेड़ औ टिडी को काज कीजै ।—कबीर॰ रे॰, पृ॰ २६ ।

टिड़ी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ टिट्टिभ या सं॰ तत् + डीन (=उड़ना) ] एक जाति का टिड़ा या उड़नेवाला कीड़ा जो भारी दल या समूह बाँधकर चलता है और मार्ग के पेड़ पौधे और फसल को बड़ी हानि पहुँचाता है । इसका आकार साधारण टिड्डे के ही समान, पैर और पेट का रंग लाल चा नारंगी तथा शरीर भूरापन लिए और चित्तादार होता है । जिस समय इसका दल बादल की घटा के समान उमड़कर चलता है, उस समय आकाश में अंधकार सा हो जाता है और मार्ग के पेड़ पौधों खेतों में पत्तियाँ नहीं रह जाती । टिड्डियाँ हजार दो हजार कोस तक की लंबी यात्रा करती हैं और जिन जिन प्रदेशों में होकर जाती हैं, उनकी फसल को नष्ट करती जाती हैं । ये पर्वत की कंदराओं और रेगिस्तानों में रहती हैं और बालू में अपने अंडे देती हैं । अफ्रिका के उत्तरी तथा एशिया के दक्षिणी भागों में इनका आक्रमण विशेष होता है । मुहा॰—टिड्डि दल = बहुत बड़ा झुंड । बहुत बड़ा समूह । बड़ी भारी भीड़ या सेना ।