टीका
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]टीका ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तिलक]
१. वह चिह्न जो उँगली में गीला चंदन, रोली, केस, मिट्टी आदि पोतकर मस्तक, बाहु आदि अंगों पर श्रृंगार आदि या सांप्रदायिक संकेत के लिये लगाया जाता है । तिलक । क्रि॰ प्र॰—लगाना । मुहा॰—टीका टाकना = बकरे को बलिदान करने के पहले टीका लगाना । उ॰—छेरी खाए भेड़ी खाए बकरी टीका टाके ।— कबीर श॰, भा॰ ३, पृ॰ ५२ । टीका देना = टीका लगाना । माथे पर घिसे हुए चंदन आदि से चिह्न बनाना । विशेष—टिका पूजन के समय तथा अनेक शुभ अवसरों पर लगाया जाता है । यात्रा के समय भी जानेवाले के शुभ के लिये उसके माथे पर टीका लगाते हैं ।
२. विवाह स्थिर होने की रीति जिसमें कन्यापक्ष के लोग वर के माथे में तिलक लगाते हैं और कुछ द्रव्य वरपक्ष के लोगों को देते हैं । इस रीति के हो चुकने पर विवाह का होना निश्चित समय माना जाता है । तिलक । क्रि॰ प्र॰—चढ़ना ।—चढ़ाना ।—भेजना ।
३. दोनों भौं के बीच माथे का मध्य भाग (जहाँ टीका लगाते हैं) ।
४. किसी समुदाय का शिरोमणि । ( किसी कुल, मंडली या जनसमूह में) श्रेष्ठ पुरुष । उ॰—समाधान करि सो सबही का । गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका ।—तुलसी (शब्द॰) ।
५. राजतिलक । राजसिंहासन या गद्दी पर बैठने का कृत्य ।
टीका ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] किसी वाक्य, पद या ग्रंथ का अर्थ स्पष्ट करनेवाला वाक्य या ग्रंथ । व्याख्या । अर्थ का विवरण । विवृत्ति । जैसे, रामायण की टीका, सतसई की टीका ।
टीका टिप्पणी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ टीका + टिप्पणी]
१. आलोचना । तर्क वितर्क ।
२. अप्रशंसा । निंदा ।