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टोक

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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टोक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ स्तोक] एक बार में मुँह से निकला हुआ शब्द । किसी पाया शब्द का टुकडा़ । उच्चारण किया हुआ अक्षर । जैसे,—एक टोक मुँह से न निकला ।

टोक ^२ संज्ञा स्त्री॰

१. छोटा सा वाक्य जो किसी को कोई काम करते देख उसे टोंकने या पूछताछ करने के लिये कहा जाय । पूछाताछ । प्रश्न आदि द्वारा किसी कार्य में बाधा । जैसे,— 'क्या करते हो ?', 'कहाँ जाते हो ?' इत्यादि । यौ॰—टोक टाक = पूछताछ । प्रश्न आदि द्वारा बाधा । जैसे,— बडे़ जरूरी काम से जा रहै हैं, टोकटाक न करो । रोक टोक = मनाही । मुमानिअत । निषेध ।

२. नजर । बुरी दृष्टि का प्रभाव ।—(स्त्रि॰) । मुहा॰—टोक में आना = नजर लगानेवाले आदमी के सामने पड़ जाना । जैसे—बच्चा टोक में पड़ गया ।

टोक पु ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ टेक] टेंक । प्रतिज्ञा । उ॰—बिप्र सूद्र जोगी तपी सुकवि कहत करि टोक ।—ब्रज॰ ग्रं॰, पृ॰ ११८ ।