टोकना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

टोकना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ टोक]

१. किसी को कोई काम करते देखकर उसे कुछ कहकर रोकना या पूछताछ करना । जैसे, 'क्या करते हो ?' 'कहाँ जाते हो ?' इत्यादि । बीच में बोल उठना । प्रश्न आदि करके किसी कार्य में बाधा डालना । उ॰—गोपिन के यह ध्यान कन्हाई । नेकु न अंतर होय कन्हाई । घाट बाट जमुना तट रोकै । मारग चलत जहाँ तहँ टोकै ।—सूर (शब्द॰) । विशेष—यात्रा के समय यदि कोई रोककर कुछ पूछता है तो यात्री अपने कार्य की सिद्धि के लिये बुरा शकुन समझता है ।

२. नजर लगाना । बुरी दृष्टि डालना । हूँसना ।

३. एक पहलवान का दूसरे पहलवान से लड़ने के लिये कहना ।

४. गलती बतलाना । अशुद्धि की ओर ध्यान दिलाना ।

५. आपत्ती करना । एतराज करना ।

टोकना ^२ संज्ञा पुं॰ [?] [स्त्री॰ टोकनी]

१. टोकरा । डला ।

२. पानी रखने का धातु का एक बडा़ बरतन । एक प्रकार का हंडा ।

टोकना पु † क्रि॰ स॰ [हिं॰]दे॰ 'टिकाना-४' । उ॰—इहि बिधि चारि टकोर टोकावै ।—कबीर सा॰, पृ॰ १५८४ ।