ठंढक
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ठंढक संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ ठंढा + क (प्रत्य॰)]
१. शीत । सरदी । उष्णता या गरमी का ऐसा अभाव जिसका विशेष रूप से अनुभव हो । मुहा॰—ठंढक पड़ना = शीत का संचार होना । सरदी फैलना । ठंढक लगना = शीत का अनुभव होना । शीत का प्रभाव पड़ना ।
२. ताप वा जलन की कमी । ताप की शांति । तरी । क्रि॰ प्र—आना ।
३. प्रिय वस्तु की प्राप्ति या इच्छा की पूर्ति से उत्पन्न संतोष । तुप्ति । प्रसन्नता । तसल्ली । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।
४. किसी उपद्रव या फैले हुए रोग आदि की शांति । किसी हलचल या फैली हुई बीमारी आदि की कमी या अभाव । जैसे,— इधर शहर में हैजे का बड़ा जोर था पर अब ठंढक पड़ गई है । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।