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ठगना

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ठगना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ ठग + ना (प्रत्य॰)] धोखा देकर माल लूटना । छल और धूर्तता से धन हरण करना ।

२. धोखा देना । छल करना । धूर्तता करना । भुलावे में डालना । मुहा॰—ठग सा, ठगी सी = धोखा खाया हुआ । भूला हुआ । चकित । भौंचक्का । आश्चर्य से स्तब्ध । दंग । उ॰—(क) करत कछु नाहीं आजु बनी । हरि आए हों रही ठगी सी जैसे चित्र धनी ।—सूर (शब्द॰) । (ख) चित्र में काढ़ी सी ठाढ़ी ठगी सी रही कछु देख्यो सुन्यो न सुहात है ।—सुंदरीसर्वस्व (शब्द॰) ।

३. उचित से अधिक मूल्य लेना । वाजिव से बहुत ज्यादा दाम लेना । सौदा बेचने में बेईमानी करना । जैसे,—यह दूकानदार लोगों को बहुत ठगता है । संयो॰ क्रि॰—लेना ।

ठगना ^२ क्रि॰ अ॰

१. ठगा जाना । धोखा खाकर लुटना ।

२. धोखे में आना । चकित होना । आश्चर्य से स्तब्ध होना । ठक रह जाना । दंग रहना । उ॰—(क) तेउ यह चरित देखि ठगि रहहीं ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) बिनु देखे बिन ही सुने ठगत न कोउ बाँच्यो ।—सूर (शब्द॰) ।