ठस
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ठस वि॰ [सं॰ स्थास्नु ( = द्दढ़ता से जमा हुआ, द्दढ़)]
१. जिसके कण परस्पर इतने मिले हों कि उसमें उँगली आदि न धँस सके । जिसके बीज में कहीं रेध्र वा अवकाश न हो । जो भुरभुरा, गीला या मुलायम न हो । ठोस । कड़ा । जैसे, बरफी का सूखकर ठस होना, गीले आटे का ठस होना ।
२. जो भीतर से पोला या खाली न हो । भीतर से भरा हुआ ।
३. जिसके सूत परस्पर खूब मिले हों । जिसकी बुनावट घनी हो । गफ । जैसे, ठस बुनावट, ठस कपड़ा । उ॰—इस टोपी का काम खूब ठस है ।—(शब्द॰) ।
४. द्दढ़ । मजबूत ।
५. भारी । वजनी । गुरु ।
६. जो अपने स्थान से जल्दी न टसके । जो हिले डोले नहीं । निष्क्रिय । सुस्त । मट्ठर । आलसी ।
७. (रुपया) जिसकी झनकार ठीक न हो । जो खरे सिक्के के ऐसा न हो । जो कुछ खोटा होने के कारण ठीक आवाज न दे । जैसे, ठस रुपया ।
८. भरा पूरा । संपन्न । घनाढय । जैसे, ठस असामी ।
९. कृपण । कंजूस । १० । हृठी । जिद्दी । अड़ करनेवाला ।