डोल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

डोल संज्ञा पुं॰ [हिं॰ टीला]

१. प्राणियों के शरीर की ऊँचाई । शरीर का विस्तार । कद । उठान । जैसे,—वह छोटे डील का आदमी है । उ॰—भई यदपि नैसुक दुबराई । बड़ें डील नहिं देत दिखाई ।—शकुंतला, पृ॰ ३१ । यौ॰—डील डौल = (१) देह की लंबाई चौड़ाई । शरीरविस्तार । (२) शरीर का ढाँचा । आकार । आकृति । काठी । डाल पील = दे॰ 'डीलडौल' । उ॰—दोउ बंस सुदंध प्रकासु । बड़ि डील पील सु जालु ।—ह॰, रासो॰ पृ॰ १२५ ।

२. शरीर । जिस्म । दहे । जैसे,—(क) अपने डील से उसने इतने रुपए पैदा किए । (ख) उनके डाल से किसी की बुराई नहीं हो सकती ।

३. व्यक्ति । प्राणी । मनुष्य । जैसे,—सौ डील के लिये भोजन चाहिए । उ॰—जेते डील लेते हाथी, तेतेई खवास साथी, कंचन के कुंड़ेल किरीट पुंज छायो है ।— हृदयराम (शब्द॰) ।

डोल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ दोल (= झूलना, लटकाना)]

१. लोहे का एक गोल बरतन जिसे कुएँ में लटकाकर पानी खींचते हैं ।

२. हिंडोला । झूला । पालना । उ॰—(क) सघन कुंज में डोल बनायो झूलत है पिय प्यारी ।—सूर (शब्द॰) । (ख) प्रभुहिं चितै पुनि चितै महि, राजत लोचन लोल । खेलत मनसिंज मीन जुग, जनु विधि मंडल डोल ।—तुलसी (शब्द॰) । यौ॰—डोल उत्सव = दे॰ 'दोलोत्सव' । उ॰—सो इतने ही उनको सुधि आई जो आजु तो डोल कौ दिन है ।— दो सौ बावन॰ भा॰ १, पृ॰ २२९ ।

३. डोली । पालकी । शिविका । उ॰—महा डोल दुलहिन के चारी । देहु बताय हीहु उपकारी ।—रघुराज (शब्द॰) । †

४. धार्मिक उत्सवों में निकलनेवाली चौकियाँ या विमान ।

६. जहाज का मत्सूल (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—खड़ा करना ।

७. कंप । खलभली । हलचल । उ॰—बादसाह कहँ ऐस न बोलू । चढ़ै तै परै जगत महँ डोलू ।—जायसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।

डोल ^२ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की काली मिट्टी जो बहुत उपजाऊ होती है ।

डोल † ^३ वि॰ [हिं॰ डोलना] डोलनेवाला । चंचल । उ॰—तुम बिनु काँपे धनि हिया, तन तिनउर भा डोल । तेहि पर बिरह जराइकै चहै उड़ावा झोल ।—जायसी (शब्द॰) ।