ढरकना
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ढरकना † क्रि॰ अ॰ [हिं॰ ढार या ढाल]
१. पानी या और किसी द्रव पदार्थ का आधार से नीचे गिर पड़ना । ढलना । गिरकर बह जाना । उ॰— वाके पानी पत्र न लागै ढरकि चलै जस पारा हो ।—कबीर श॰, भा॰ १, पृ॰ २७ । संयो॰ क्रि॰—डाना ।—पड़ना ।
२. नीचे की ओर जाना । उ॰— (क) सकल सनेह शिथिल रघुबर के । गए कोस दुइ दिनकर ढरके ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) परसत भोजन प्रातहिं ते सब । रवि माथे ते ढरकि गयो अब ।—सूर (शब्द॰) । मुहा॰—दिन ढरकना = सूर्यास्त होना । दिन डूबना ।
३. आराम करना । शय्या पर शयन करना । लेटना ।