ढरनि

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ढरनि पु संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ ढरना]

१. गिरने वा पड़ने की क्रिया । पतन । उ॰— सखी बचन सुनि कौसिला लखि सुंदर पासे ढरनि ।— तुलसी (शब्द॰) ।

२. हिलने डोलने की क्रिया । गति । स्पंदन । उ॰— कंठसिरी दुलरी हीरन की नासा मुक्ता ढरनि ।— स्वामी हरिदास (शब्द॰) ।

३. चित्त की प्रवृत्ति । झुकाव । उ॰— रिस औ रुचि हौं समुझि देखिहौं वाके मन की ढरनि, वाकी भावती बात चलाय हौं ।— सूर (शब्द॰) ।

४. किसी की दशा पर हृदय द्रवीभूत होने की क्रिया । दीन दशा दूर करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति । स्वाभा- विक करुणा । दयाशीलता । सहज कृपालुता । उ॰—(क) राम नाम सों प्रतीत प्रीति राखे कबहुँक तुलसी ढरैंगे राम अपनी ढरनि ।— तुलसी (शब्द॰) ।(ख) कृपासिंधु कोसल धनी सरनागत पालक ढरनि अपनी ढरिए ।— तुलसी (शब्द॰) ।