ढारना
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
ढारना † क्रि॰ सं॰ [सं॰ धार, हिं॰ ढार + ना (प्रत्य॰)]
१. पानी या और किसी द्रव पदार्थ को आधार से नीचे गिराना । गिराकर बहाना । उ॰— (क) ऊतरु देइ न, लेइ उसासू । नारि चरित करि ढारह आँसू ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) उरग नारि आगैं भई ठाढ़ी नैननि ढारर्ति नीर ।— सूर॰ १० । ५७५ ।
२. गिराना । ऊपर से छोड़ना । डालना । जैसे, पासा, ढारना । विशेष— दे॰ 'डालना' ।
३. चारो ओर घुमाना । ड़ुलाना (चँवर के लिये) उ॰— रचि बिवान सो साजि सँवारा । चहुँ दिसि चँवर करहिं सब ढारा ।—जायसी (शब्द॰) ।
४. धातु आदि को गसा कर साँचे के द्वारा तैयार करना । दे॰ 'ढलना'—६ ।