ढाल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ढाल संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] तलवार, भाले आदि का वार रोकने का अस्त्र जो चमड़े, धातु आदि का बना हुआ थाली के आकार का गोल होता है । फरी । चर्म । आड़ । फलक । बिशेष—ढाल गैड़े के पुट्ठे कछुए की पीठ, धातु आदि कई चीजों की बनती है । जिस और इस हाथ से पकड़ते हैं उधर यह गहरी और आगे की ओर उभरी हुई होती है । आगे की ओर इसमें ४—५ काँटे या मोटी फुलिया जड़ी होती है । मुहा॰— ढाल बाँधना = ढाल हाथ में लेना ।

२. एक प्रकार बड़ा झंडा जो राजाओं की सवारी के साथ चलता है । उ॰— बैरख ढाल गगन गा छाई । चला कटक धरती न समाई ।— जायसी ग्रं॰, पृ॰ २२४ ।

ढाल ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अवधार]

१. वह स्थान जो आगे की ओर क्रमशः इस प्रकार बराबर नीचा होता गया हो कि उसपर पड़ी हुई वस्तु नीचे की ओर खिसक या लुढ़क या वह सके । उतार । जैसे,— (क) पानी ढाल की ओर बहेगा । (ख) वह पहाड़ की ढाल पर से फिसल गया ।

२. ढंग । प्रकार तौर तरीका । उ॰— (क) सदा मति ज्ञान में सु ऐसी एक ढाल है ।— हनु— मान (शब्द॰) । (ख) ढाल धरो सतसंग उबारा ।— धरनी॰, पृ॰, ४१ । †

३. उगाही । चंदा । बेहारी ।— (पंजाब) ।