ढेंकली
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ढेंकली संज्ञा स्त्री॰ [देशी । अथवा हिं॰ ढेंक (=चिड़िया, जिसकी गरदन लंबी होती है)]
१. सिंचाई के लिये कूएँ से पानी निकालने का एक यंत्र । विशेष— इसमें एक ऊँची खड़ी लकड़ी के ऊपर एक आड़ी लकड़ी बीचोबीच से इस प्रकार ठहराई रहती है कि उसके दोनों छोर बारी बारी से नीचे ऊपर हो सकते हैं । इसके एक छोर में, मिट्टी छोपी रहती है । या पत्थर बँघा रहता है और दूसरे छोरे में जो कुएँ के मुँह की ओर होता है, डोल की रस्सी बँधी होती है । मिट्टी या पत्थर के बोझ से डोल कुएँ में से ऊपर आती है । क्रि॰ प्र॰—चलाना ।
२. एक प्रकार की सिलाई जो जोड़ की लकीर के समानांतर नहीं होती आड़ी होती है । आड़े ड़ेभ की सिलाई । क्रि॰ प्र॰— मारना ।
३. धान कूटने का लकड़ी का यंत्र जिसका आकार खींचने की ढेंकली ही से मिलता जुलता पर बहुत छोटा और जमीन से लगा हुआ होता है । धनकुट्टी । ढेंकी ।
४. भबके से अर्क उतारने का यंत्र । वकतुंड यंत्र ।
५. सिर नीचे और पैर ऊपर करके उलट जाने की क्रिया । कलाबाजी । कलैया । क्रि॰ प्र॰—खाना ।