ढोला
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ढोला संज्ञा पुं॰ [हिं॰ ढोल]
१. बिना पेर का रेंगनेवाला एक प्रकार का छोटा सुफेद कीड़ा जो आध अंगुल से दो अंगुल तक लंब होता है ओर सड़ी हुई वस्तुओं (फल आदि) तथा पौधों के डंठलो में पड़ जाता है ।
२. वह ढूह या छोटा चबूतरा लो गाँवों की लीमा सूचित करने के लिये बना रहता है । हद का निशान । यो॰—ढोलाबंदी ।
३. गोल मेहराज बनाने का ड़ाट ।
४. पिड़ । शरीर । देह । उ॰— जो लगि ढोला तौ लगि बोला तो लगि धनव्यव- हारा ।— कबीर (शब्द॰) ।
५. डंका या दमामा । उ॰— वामसैनि राजा तब बोला । चहुँ दिसि देहु जुद्ध कहँ ढोला ।— हिंदी प्रेम॰, पृ॰२२३ ।
ढोला ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ दुर्लभ, दुल्लह, राज॰ प्रं ढोला]
१. पति । प्यार । प्रियतम ।
२. एक प्रकार का गीत ।
३. मूर्ख मनुष्य । जड़ ।