तत
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तत ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वायु ।
२. विस्तार ।
३. पिता ।
४. पुत्र । संतान ।
५. वह बाजा जिसमें बजाने के लिये तार लगे हों । जैसे, सारंगी, सितार, बीन, एकतारा, बेहला आदि । विशेष—तत बाजे दो प्रकार के होते हैं—एक तो वे जो खाली उँगली या मिजराव आदजि से बजाए जाते हैं; जैसे, सितार बीन, एकतारा आदि । ऐसे बाजों को अंगुलित्र यंत्र कहते हैं और जो कमानी की सहायता से बजाए जाते हैं, जैसे, सारंगी, बेला आदि, वे धनुःयंत्र कहलाते हैं ।
तत ^२ वि
१. विस्तृत । फैला हुआ ।
२. विस्तारित ।
३. ढका हुआ । छिपा हुआ ।
४. झुका हुआ ।
५. अंतरहित । लगातार [को॰] ।
तत पु † ^३ वि॰ [सं॰ तप्त] तपा हुआ । गरम । उ॰—नखत अकासहिं चढ़ई दिपाई । तत तत लूका परहिं बुझाई ।— जायसी (शब्द॰) ।
तत पु ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तत्त्व] दे॰ 'तत्व' ।
तत पु ^५ सर्व॰ [सं॰ तत्] उस । जैसे,—ततखन = तत्क्षण ।