तपना
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तपना ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ तपन]
१. बहुत अधिक गर्मी, आँच या धूप आदि के कारण खूब गरम होना । त्पत होना । उ॰— निज अध समुझि न कुछ कहि जाई । तपइ अवाँ इव उर अधिकाई ।—तुलसी (शब्द॰) । संयो॰ क्र॰—जाना । मुहा॰—रसोई तपना = दे॰ 'रसोई' के मुहाविरे ।
२. संतप्त होना । कष्ठ सहना । मुसीबत झेलना । जैसे,—हम घंटों से यहाँ आपके आसरे तप रहे हैं । उ॰—सीप सेवाति कहँ तपइ समुद्र मँझ नीर ।—जायसी (शब्द॰) ।
३. तेज या ताप धारण करना । गरमी या ताप फैलाना । उ॰— जइस भानु जप उपर तापा ।—जायसी (शब्द॰) ।
४. प्रबलता, प्रभुत्व या प्रताप दिखलाना । आतंक फैलाना । जैसे,—आजकल यहाँ के कोतवाल खूब तप रहे हैं । उ॰— (क) सेरसाहि दिल्ली सुलतानू । चारिउ खंड तपइ जस भानू ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) कर्मकाल, गुल, सुभाउ सबके सीस तपत ।—तुलसी (शब्द॰) ।
तपना ^२ क्रि॰ अ॰ [सं॰ तप्] तपस्या करना । तप करना ।