तबला

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तबला संज्ञा पुं॰ [अ॰ तबलहु]

१. ताल देने का एक प्रसिद्ध बाजा जिसमें काठ के लंबोतरे और खोखले कूँड़ पर गोल चमड़ा मढ़ा रहता है । विशेष—यह चमड़ा 'पूरी' कहलाता है और इसपर लोहचून, झाँवे, लोई, सरेस, मँगरैले और तेल को मिलाकर बनाई हुई स्याही की गोल टिकिया अच्छी तरह जमाकर चिकवे पत्थर से घोटी हुई होती है । इसी स्याही पर आघात पड़ने से तबले में से आवाज निकलती है । कुँड़ पर रखकर यह पूरी चारों ओर चमड़े के फीते से, जिसे दद्धी' कहते है, कसकर बाँध दी जाती है । इस बद्धी और कुँड़ के बीच में काठ की गुल्लियाँ भी रख दी जाती हैं जिनकी सहायता से तबले का स्वर आदश्यकतानुसार चढ़ाते या उतारते हैं । वातावरण अधिक ठंढा हो जाने के कारण भी तबला आपसे आप उतर जाता और अधिक गरमी के कारण आपसे आप चढ़ जाता है । यह बाजा अकेला नहीं बजाया जाता, इसी तरह के और दूसरे बाजे के सात बजायाँ जाता है जिसे 'बायाँ', 'ठेका' या 'डुग्गी' कहते हैं । साधारणतः बोलचाल में लोग तबले और बाएँ को एक साथ मिलाकर भी केवल तबला ही कहते हैं । तबला दाहिने हाथ से और बायाँ बाएँ हाथ से बजाया जाता है । क्रि॰ प्र॰—बजना ।—बजाना । मुहा॰—तबला उतरना = तबले की बद्धी का ढीला पड़ जाना जिसके कारण तबले में से धीमा या मंद स्वर निकलने लगे । तबला उतारना = तबले की बद्धी को ढीला करके या और किसी प्रकार पूरी पर का तनाव कम कर देना जिससे तबले में से धीमा या मंद स्वर निकलने लगे । तबला खनकना = दे॰ 'तबला ठनकना' । तबला चढ़ना = तबले की बद्धी का कस जाना जिससे पूरी पर तनाव अधिक पड़ता है और स्वर ऊँचा निकलने लगता है । तबला चढ़ाना = तबले की बद्धी को कसकर पूरी पर का तनाव अधिक करना जिसमें तबले में से स्वर निकलने लगे । तबला ठसकना = (१) तबला बजना । (२) पाच रंग होना । तबला मिलाना = तबले की गु- ल्लियों को ऊपर नीचे हटा बढ़ाकर ऐसी स्थिति में लाना जिसमें पूरी पर चारों ओर से समान तनाव पड़े और तबले में से चारों ओर से कोई एक ही विशिष्ट स्वर निकले । पु

२. एक तरह का बर्तन । ताँबे या पीतल का एक पात्र । उ॰— पुनि चरवा चरई तष्टी तबला झारी लोटा गावहिं ।—सुंदर ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ७४ ।