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तम

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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तम ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तमः, तमस्]
तमस एक शक्ति होती है जो कि अंधकार, मौत, विनाश और अज्ञानता, सुस्ती और प्रतिरोध को बढ़ावा देती है। तमस -प्रभावित जीवन का परिणाम कर्म के अनुसार अवगुण होता है; एक निम्न जीवन-रूप में पदावनति है। एक तामसिक जीवन को आलस्य, लापरवाही, द्वेष, धोखाधड़ी, असंवेदनशीलता, आलोचना और गलती ढूंढना, कुंठा, लक्ष्यहीन जीवन, तार्किक सोच या योजना की कमी और बहाने बनाना, द्वारा चिह्नित किया जाता है। तामसिक गतिविधियों में ज्यादा खाना अधिक सोना ।


१. अंधकार । अँधेरा ।

२. पैर का अलग भाग ।

३. तमाल वृक्ष ।

४. राहु ।

५. वराह । सुअर ।

६. पाप ।

७. क्रोध ।

८. अज्ञान ।

९. कालिख । कालिमा । श्यामता ।

१०. नरक ।

११. मोह ।

१२. सांख्य के अनुसार अविद्या ।

१३. सांख्य के अनुसार प्रकृति का तीसरा गुण जो भारी और रोकनेवाला माना गया है । विशेष—जब मनुष्य में इस गुण की अधिकता होती है, तब उसकी प्रवृत्ति, काम, क्रोध, हिंसा आदि नीच और बुरी बातों की ओर होने लगती है ।

तम ^२ वि॰

१. काला । दूषित । बुरा [को॰] ।

तम ^३ वि॰ [सं॰ तमय्] एक प्रकार का प्रत्यय, जो विशेषण शब्दों में लगने पर अतिशय या सबसे अधिक का अर्थ प्रकट करता है जैसे, क्रूरतम, कठिनतम ।

तम पु ^४ सर्व॰ [सं॰ त्वाम्, हिं॰ तुम, गुज॰ तम] दे॰ 'तुम' । उ॰—हाहुलि राय हमीर सलष पांमार जैत सम । कह्वौ राज हम मात तात अप्पी दिल्ली तम ।—पृ॰ रा॰, १८ ।६ ।