तमाल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तमाल संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. बीस पचीस फुट ऊँचा एक बहुत सुंदर सदाबहार वृक्ष जो पहाड़ों पर और जमुना के किनारे भी कहीं कहीं होता है । विशेष—यह दो प्रकार का होता है, एक साधारण और दूसरा श्याम तमाल । श्याम तमाल कम मिलता है । उसके फूल लाल रंग के और उसकी लकड़ी आबनूस की तरह काली होती है । तमाल के पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं और शरीफे के पत्ते से मिलते जुलते होते हैं । बैसाख के महीने में इसमें सफेद रंग के बड़े फूल लगते हैं । इसमें एक प्रकार के छोटे फल भी लगते हैं जो बहुत अधिक खट्टे होने पर भी कुछ स्वादिष्ट होते हैं । ये फल सावन भादों में पकते हैं और इन्हें गीदड़ बड़े चाव से खाते हैं । श्याम तमाल को वैद्यक में कसैला, मधुर, बलवीर्यवर्धक, भारी, शीतल, श्रम, शोथ और दाह को दूर करनेवाला तथा कफ और पित्तनाशक माना है । पर्या॰—कालस्कंध । तापित्थ । अमितद्रुम । लोकस्कंध । नीलध्वज । नीलताल । तापिंज । तम । तया । कालताल । महाबल ।

२. तेजपत्ता ।

३. काले खैर का वृक्ष ।

४. बाँस की छाल ।

५. वरुण वृक्ष ।

६. एक प्रकार की तलवार ।

७. तिलक का पेड़ ।

८. हिमालय तथा दक्षिण भारत में होनेवाला एक प्रकार का सदाबहार पेड़ । विशेष—इसमें से एक प्रकार का गोंद निकलता हैं जो घटिया रेवंद चीनी की तरह का होता है । इसकी छाल से एक प्रकार का बढ़िया पीला रंग निकलता है । पूस, माघ में इसमें फल लगता है जिसे लोग यों ही खाते अथवा इमली की तरह दाल तरकारियों में डालते हैं । इसका व्यवहार औषध में भी होता है । लोग इसे सुखाकर रखते और इसका सिरका भी बनाते हैं । इसे मन्डोला और उमवेल भी कहते है ।

९. सुरती (को॰) ।

१०. तमाल के बीज के रस और चंदन का तिलक (को॰) ।