तरक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तरक ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ तण्डक] दे॰ 'तड़क' ।
तरक ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ तड़कना]दे॰ 'तड़क' ।
तरक ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तर्क]
१. विचार । सोच विचार । उधेड़बुन । ऊहापोह । उ॰—होइहि सोई जो राम रचि राखा । को करि तरक बढ़ावरइ साखा ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।
२. उक्ति । तर्क । चतुराई का वचन । चोज की बात । उ॰— (क) सुनत हँसि चले हरि सकुचि भारी । यह कह्यो आज हम आइहैं गेह तुव तरक जिनि कहो हम समुझि डारी ।—सूर (शब्द॰) । (ख) प्यारी को मुख धोई कै पट पोंछि सँवारयो तरक बात बहुतै कही कछु सुधि न सँभारयो —सूर (शब्द॰) ।
तरक ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ तर ( = पथ ?)] वह अक्षर या शब्द जो पृष्ठ या पन्ना समाप्त होने पर उसके नीचे किनारे ओर आगे के पृष्ठ के आरंभ का अक्षर या शब्द सूचित करने के लिये लिखा जाता है ।
तरक † ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तर्क ( = सोच विचार)]
१. अड़चन । बाधा ।
२. व्यतिक्रम । भूल चूक । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।
तरक ^६ संज्ञा पुं॰ [अं॰ तर्क]
१. त्याग । परित्याग ।
२. छूटना । क्रि॰ प्र॰—करना ।