तलवार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तलवार संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ तरवारि] लोहे का एक लंबा धारदार हथियार जिसके आघात से वस्तुएँ कट जाती है । खड्ग । असि । कृपाण । पर्या॰—असि । विशसन । खड्ग । तीक्ष्णवर्मा । दुरासद । श्रीगर्भ । विजय । धर्मपाल । धर्ममाल । निस्त्रिंश । चंद्रहास । रिष्टि । करवाल । कौक्षेयक । कृपाण । क्रि॰ प्र॰—चलना ।—चलाना ।—मारना ।—लगना ।— लगाना ।—करना । मुहा॰—तलवार करना = तलवार चलाना । तलवार का वार करना । तलवार कसाना = तलवार झुकाना । तलवार का खेत = लड़ाई का मैदान । युद्धक्षेत्र । तलवार का घाट = तलवार में वह स्थान जहाँ से उसका टेढ़ापन आरंभ होता है । तलवार का छाला = तलवार के फल में उभरा हुआ दाग । तलवार का डोरा = तलवरा की धार जो पतले सूत की तरह दिखाई देती है । तलवार का पट्ठा = तलवार की चौड़ी धार । तलवार का पानी = तलवार की आभा या दमक । तलवार का फल = मूठ के अतिरिक्त तलवार का सारा भाग । तलवार का बल = तलवार का टेढ़ापन । तलवार का मुँह = तलवार का धार । तलवार का हाथ = (१) तलवार चलाने का ढंग । (२) तलवार का वार । खड्ग का आघात । तलवार की आँच = तलवार की चोट का सामना । तलवार की माला = तलवार का वह जोड़ जो दुबाले से कुछ दूर पर होता है । तलवारों की छाँह में = ऐसे स्थान में जहाँ अपने ऊपर चारों ओर तलवार ही तलवार दिखाई देती है । रणक्षेत्र में । तलवार के घाट उतारना = लड़ते लड़ते मर जाना । तलवार के घाट उतारा जाना= मारा जाना । वीरगति पाना । उ॰— ल्हासा में बहुत से लाभ और विद्वान तलवार के घाट उतारे गए हैं । —किन्नर॰, पृ॰ ९१ । तलवार खींचना = म्यान से तलवार बाहर करना । तलवार जड़ना = तलवार मारना । तलवार से आघात करना । तलवार तौलना = तलवार को हाथ में लेकर अंदाज करना जिससे वार भरपूर बैठे । तलवार सँभालना । तलवार पर हाथ रखना = (१) तलवार निकालने के लिये तैयार होना । (२) तलवार की शपथ होना । तलवार बाँधना = तलवार को कमर में लटकाना । तलवार साथ में रखना । तलवार सौंतना = तलवार म्यान से निकालना । धार करने के लिये तलवार खींचना । विशेष— तलवार का व्यवहार सब देशों में अत्यंत प्राचीन काल से होता आया है । धनुर्वेद आदि ग्रंथों को देखने से जाना जाता है कि भारतवर्ष में पहले बहुत अच्छी तलवारें बनती थीं जिनसे पत्थर तक कट सकता था । प्राचीन काल में खट्ट देश, अंग वंग, मध्यग्राम, सहग्राम, कालिंजर इत्यादि स्थान खड्ग के लिये प्रसिद्ध थे । ग्रंथों में लोहे की उपयुक्तता, खड्गों के विविध परिणाम तथा उनके बनाने का विधान भ ी दिया हुआ है । पानी देने के लिये लिखा है कि धार पर नमक या क्षार मिली गीली मिट्टी का लेप करके तलवार को आग में तपावे और फिर पानी में बुझा दे । उशना और शुक्राचार्य ने पानी के अतिरिक्त रक्त, घृत, ऊंट के दूध आदि में बुझाने का भी विधान बतलाया है । तलवार की झनकार (ध्वनि) तथा फस पर आपसे आप पडे़ हुए चिन्हों के अनुसार तलवार के शुभ, अशुभ या अच्छे बुरे होने का निर्णय किया गया है । ऐसे निर्णय के लिये जो परीक्षा की जाती है, उसे अष्टांग परीक्षा कहते हैं । तलवार चलाने के हाथ ३२ गिनाए गए हैं । जिनके नाम ये हैं—भ्रांत, उदभ्रांत, आविद्ध, आप्लुत, विप्लुत, सृत, संचांत, समुदीर्ण, निग्रह, अग्रह, पदावकर्षण, संधान, मस्तक भ्रामण, भृज भ्रामण, पाश, पाद, विबंध, भूमि, उदभ्रमण, गति, प्रत्यागति, आक्षेप, पातन, उत्थानक- प्लुति, बधुता, सौष्ठव, शोभा, स्थैर्य, दृढ़मुष्टिता, तिर्यक् प्रचार और ऊर्ध्व प्रचार । इसी प्रकार पट्टिक, मौष्टिक, महि- पाक्ष आदि तलवार के १७ भेद बतलाए गए हैं । आजकल भी तलवारों के कई भेद होते हैं; जैसे खाँड़ा, जो सीधा और छोर पर चौड़ा होता है; सैफ, जो लंबी पतली और सीधी होती है; दुधारा, जिसके दोनों ओर धार होती है । इसके अतिरिक्त स्थानभेद से भी तलवारों के कई नाम हैं । जैसे, सिरोही, बँदरी, जुनूस्त्री ? इत्यादि । एक प्रकार की बहुत पतली और लचीली तलवार ऊना कहलाती है जिसे राजा तकिए में रख सकते या कमर में लपेट सकते हैं । तलवार दुर्गा का प्रधान अस्त्र है; इसी से कभी कभी तलवार को दुर्गा भी कहते हैं ।