ताँबा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ताँबा संज्ञा पुं॰ [सं॰ ताम्र] लाल रंग की एक धातु जो खानों में गंधक, लोहे तथा और द्रव्यों के साथ मिली हुई मिलती है । विशेष—यह पीटने से बढ़ सकती है और इसका तार भी खींचा जा सकता है । ताप और विद्युत के प्रवाह का संचार ताँबे पर बहुत अधिक होता है, इससे उसके तारों का व्यवहार टेलिग्राफ आदि में होता है । ताँबे में और दूसरी धातुऔं को निर्दिष्ट मात्रा में मिलाने से कई प्रकार की मिश्रीत धातुएँ बनती हैं, जैसे, राँगा मिलाने से काँसा, जस्ता मिलाने से पीतल । कई प्रकार के विलायती सोने भी ताँवे से बनते हैं । खूब ठंढी जगह में ताँबा और जस्ता बराबर बराबर लेकर गला डाले । फिर गली हुई धातु को खूद घोटे और तोड़ा सा जस्ता और मिला दे । धोंटते धोंटते कुछ देर में सोने की तरह पीला हो जायगा । ताँबे की खानें संसार में बहुत स्थानों में हैं जिनमें भिन्न भिन्न यौगिक द्रव्यों के अनुसार भिन्न भिन्न प्रकार का ताँबा निकलता है । कहीं धूमले रंग का, कहीं बैंगनी रंग का, कहीं पीले रंग का । भारतवर्ष में सिंहभूमि, हजारीबाग, जयपुर, अजमेर, कच्छ, नागपुर, नेल्लोर इत्यादि अनेक स्थानों में ताँबा निकलता है । जापान से बहुत अच्छे ताँबे के पत्तर बाहर जाते हैं । हिंदुओं के यहाँ ताँबा बहुत पवित्र धातु माना जाता है, अतः उसके अरघे, पंचपात्र, कलश, झारी आदि पूजा के बरतन बहुत बनते हैं । डाक्टरी, हकीम और वैद्यक तीनों मत की चिकित्साओं में ताँबे का व्यवहार अनेक रूपों में होता है । आयुर्वेद में ताँबा शोधने की विधि इस प्रकार है । ताँबे का बहुत पतला पत्तर करके आग में तपाकर लाल कर डाले । फिर उसे क्रमशः तेल, मट्ठे, काँजी, गोमूत्र और कुलथी की पीठी में तीन बार बुझावे । बिना शोधा हुआ ताँबा विष से अधिक हानिकारक होता है । पर्या॰—तम्रक । शुल्व । म्लेच्छमुख । द्वयष्ट । वरिष्ठ । उदुंबर । द्विष्ट । अंवक । तपनेष्ट । अरविंद । रविलौह । रविप्रिय । रक्त । नैपालिक । मुनिपित्तल । अर्क । लोहितायस ।

ताँबा ^२ संज्ञा पुं॰ [अ॰ तअमह्] मांस का वह टुकड़ा जो बाज आदि शिकारी पक्षियों के आगे खाने के लिये डाला जाता है ।